Friday, October 7, 2011

‘फिर और महिला दिवस’

फिर और महिला दिवस

एक बार फिर

पुरूषों ने मना लिया

एक औरमहिला दिवस

ज़माने भर के ताम-झाम

औपचारिकतायें

कर ली गई पूरी

ख़ुब बढ़ा-बढ़ा कर

चढ़ा-चढ़ा कर

किया गया नारी को

महिला मण्डित

मीडिया ने भी

बहती गंगा में

मल-मल कर

धोये हाथ

चंद चर्चित नारियों को

करके हाईलाईट

पृष्ठ भर-भर कर

बटोर ली वाही-वाही

(उन महिलाओं का क्या

जिनके लिये 8 मार्च

महज काली लकीरें हैं)

……… हा……..……..हा

महिलायें हैं कि

फूली नहीं समाई

लेकिन

इस भारी-भरकम

शोर-शराबे में

कुचल कर रह गई

उन महिलाओं की

हृदय-विदारक चीख़-पुकार

हर दिन की तरह

इस दिन भी आई

जो किसी किसी तरह

कोई कोई / अपराध की

चपेट में

हर सैंतालीस मिनिट में

हुई बलात्कार की शिकार

किया गया / हर चौवालीस

मिनट में अपहरण

इसी दिन भी

उन्नीस महिलाओं को

दहेज की भभकती आग में

जलना पड़ा / धूधू कर

छेड़छाड़ से हुई आहत

चौरासी नारियाँ

हर तीसरी मादा को

सहना पड़ा / क़रीबी रिश्तेदारों

का अत्याचार

चलिए / घरेलु हिंसा को

मारिए गोली

लेकिन (निर्ममता की सारी

हदें पार कर)

धारदार कैंची से

वात्सल्य-रस में / शराबोर

असंख्य मासूम / मादा-भ्रूणों के

छोटे…..छोटे ……..छोटे

टुकड़े करते / खूनी हाथ

बना देते हैं / जिसकी कोख को

क़त्लगाह…………!!!

वह

बेचारी औरत ???

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